अदालत की खरी-खरी, पैसे ऐंठने का धंधा बन गया है डाक्टरी का पेशा
आम जनता भले ही लंबे समय से यह समझती और जानती है कि निजी अस्पताल एवं नर्सिंग होम अब सेवा या मरीजों के इलाज के नहीं बल्कि पैसे छापने की जगह बन गए हैं, विभिन्न प्राधिकरणों में बैठे इस देश के कर्ता धर्ता ये मानने के लिए तैयार ही नहीं होते हैं। हालात यह हैं कि ये अस्पताल अपने कर्मचारियों का भी जमकर शोषण कर रहे हैं। उनसे काम तो लंबी अवधि में लिया जाता है मगर उसके अनुसार पैसे नहीं दिए जाते। मगर अब जब अदालतों ने इस विषय पर मुखर होकर अपनी राय रखनी शुरू कर दी है तो संभव है कि शायद भविष्य में हालात बदलें।
दरअसल दिल्ली उच्च न्यायालय ने निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम में नर्सों की स्थिति को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान 1 अगस्त को कहा कि शिक्षा और चिकित्सा धन ऐंठने वाले धंधे बन गए हैं।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी कर याचिका पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है। जनहित याचिका में दावा किया गया है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा नर्सों के अधिकारों की रक्षा को लेकर दिशा-निर्देश दिए जाने के बावजूद निजी चिकित्सा संस्थानों में नर्सों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।
केंद्र की ओर से अधिवक्ता मानिक डोगरा ने अदालत को बताया कि नर्सों के वेतन और काम से जुड़ी स्थितियों के बारे में दिशा-निर्देश तय किए जा चुके हैं और उन्हें लागू करना हर राज्य की जिम्मेदारी है।
पीठ ने कहा कि याचिका से नर्सों के शोषण का पता चलता है। उसने कहा कि ‘अब शिक्षा और चिकित्सा फायदे का कारोबार बन चुके हैं।’ पीठ इसी तरह की एक याचिका के साथ इस पीआईएल पर भी आठ अक्टूबर को आगे की सुनवाई करेगी।
अधिवक्ता रोमी चाको की ओर से दायर याचिका में दावा किया गया है कि निजी चिकित्सा प्रतिष्ठानों में नर्स मामूली वेतन पर काम कर रही हैं और अमानवीय परिस्थितियों’ में रह रही हैं।
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